Monday, March 30, 2009

बातें 'सारी रात' की

बातों और भावों में एक सामंजस्य है , जो महसूस होता है परन्तु दिखता नहीं । हर बात के कई भाव और हर भाव के लिए कई बात। अस्तु।
कहते हैं रात्रि निराशा , अवसाद एवं दुःख का प्रतीक है , परन्तु दुःख ही सत्य है , अवसाद ही सच्चा मित्र है एवं निराशा ही प्यार से गले लगाती है । कहते हैं रात जितनी काली अकेली और डरावनी हो , चेतना उतनी ही स्वतंत्र एवं निराकार होती है ।
शायद मेरी दृष्टी में यही वो समय है जब मनुष्य अपने आप से प्रश्न कर सकता है , अपनी जिंदगी का हिंसाब लगा सकता है और तो और अपनी बातों और भावों में एक सामंजस्य को न केवल महसूस कर सकता है अपितु देख भी सकता है । शायद यही वो समय है जब मनुष्य बिना किसी प्रतिबन्ध , बिना किसी मकड़जाल , बिना किसी अवरोध के सोच सकता है ।
जब इंसान के भाव और उसकी बातें धुआं बनकर आपस में मिलती हैं तो शायद सबसे विस्फोटक स्थिति उत्पन्न हो जाती है , और उसी धुँए का जब दुबारा पान मनुष्य करता है तो सारे बंधन स्वतः ही टूट जाते हैं और किसी इतर का ख्याल नही रहता , बस जो मन कहता है इंसान स्वतः ही करता चल जाता है ।
शायद यही बातें होती हैं 'सारी रात ' की .......................

1 comment:

  1. mere khayal mein is play ko dekhne k baad logo ka nite-out ko leke ek alag najariya hoga !! jo log ye kahte hain ki amuk aadmi itni raaton se soya nai, shayad hum log unki jabaan pe taala lagane mein safal rahein...kya kahte ho alok aur akanskha ??? ;)

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