Wednesday, March 25, 2009

हुकुम की बीवी का इंतज़ार

कठोर, कृतघ्न , कृष्ण रात
भिन्गाती, कंपकंपाती, डराती बरसात ।

अकेली सूनी भुतही हवेली
करते खूब हँसी ठिठोली ।

टूटे रोशनदानो का महल
झांकते अपलक नेत्र विकल ।

'सात' है अंक महान
जीवन के सर्ग तमाम ।

शब्दों का ये मकड़जाल
रिश्तों के जादू - जंजाल ।

दग्ध आंखों की अनवरत मार
'हुकुम की बीवी' का इंतज़ार ।

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