कठोर, कृतघ्न , कृष्ण रात
भिन्गाती, कंपकंपाती, डराती बरसात ।
अकेली सूनी भुतही हवेली
करते खूब हँसी ठिठोली ।
टूटे रोशनदानो का महल
झांकते अपलक नेत्र विकल ।
'सात' है अंक महान
जीवन के सर्ग तमाम ।
शब्दों का ये मकड़जाल
रिश्तों के जादू - जंजाल ।
दग्ध आंखों की अनवरत मार
'हुकुम की बीवी' का इंतज़ार ।
Wednesday, March 25, 2009
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