Friday, March 6, 2009

Saari Raat

'सारी रात' मन को उद्वेलित करती है , पीड़ा देती है और फिर शेष कर देती है , शायद 'सारी रात' का इससे बेहतर परिचय मेरी लेखनी से सम्भव नही । भाषा की बात करें तो किसी भी नाट्य में इससे बेहतर यमकों एवं श्लेशों का प्रयोग मुझे नही दिखा है । मालूम होता है पूरे नाट्य को ही काव्यात्मक शैली में लिखा गया हो।
'सारी रात ' कोई विरह अथवा वीभत्स रस की अभिव्यक्ति नहीं है अपितु भावनाओं का मानवीकरण है । भावनाएं जो हर स्त्री पुरूष के अन्दर होती हैं , जो स्वप्नों का अंतरमहल खड़ा कराती है , जो आनंद देती है जो रुलाती है और कुछ का तो जीवन ही नष्ट कर डालती हैं ।
मेरे मुताबिक 'सारी रात ' एक स्त्री के भावनाओं की अभिव्यक्ति है । इस नाट्य को पढ़ने से पूर्व मेरा मानना था की 'तिरिया चरित' को पुरूष समुदाय समझ ही नही सकता परन्तु 'बादल बाबु' ने जिस तरह से स्त्री के चरित्र को खोला है , वह निश्चय ही किसी महामानव के मस्तिष्क एवं लेखनी के सामंजस्य से ही सम्भव है ।

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